श्रम विभाजन एवं जाति प्रथा SHORT EXPLAIN NOTES PDF DOWNLOAD ✓ CLASS - 10th

PDF NAMEश्रम विभाजन एवं जाति प्रथा Short Explain PDF
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गद्य खंड
★ सामान्य निर्देश :
आपके प्रश्न पत्र में इस खंड से कुल 20 अंकों के प्रश्न पूछे जाएँगे। आपसे अपेक्षा है, कि गद्य खंड के प्रत्येक पाठ को आप समग्रता में पढ़ें और समझें। हाँ, यहाँ पर एक कोशिश है प्रत्येक पाठ के सार संकलन को आपके समक्ष रखने की, जो आपकी समझ को पुख्ता करते हुए दिए गए प्रश्नों के उत्तर देने में आपकी मदद करे। प्रश्न पत्र में जो पाठ्यपुस्तक के गद्यांश दिए जाते है, उनके भाव, पाठ एवं रचनाकार को समझने या चिन्हित करने में भी सार संकलन से आपको सहायता मिल सकती है।

इस खंड का आरम्भ गद्य रचनाकारों के नाम एवं उनकी रचनाओं की सूची के साथ किया गया है। इससे सम्बन्धित प्रश्न प्रायः पूछे जाते है।

पाठ का नाम - श्रम विभाजन और जाति प्रथा
लेखक का नाम - भीमराम अंबेदकर

विषय वस्तु मूलभूत तथ्य :
जातिवाद की प्रथा युगों से चली आ रही है और उसी के आधार पर श्रम का विभाजन भी किया जाता है। जातिवाद के पोषकों के अनुसार आधुनिक सभ्य समाज कार्य कुशलता के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है, चुँकि जाति प्रथा श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है। विश्व के किसी भी समाज में ऐसा नहीं होता कि जाति के आधार पर श्रम का विभाजन
किया जाए क्योंकि यह मनुष्य की रूचि पर आधारित नहीं है। लेखक का कहना है, कि हम व्यक्तियों की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपने पेशा या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। लेकिन विडंबना यह है,
कि मनुष्य के गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया  जाता है। भारत में प्रचलित जाति - प्रथा किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के अनुकूल पेशा चुनने की स्वतंत्रता नहीं देती। पेशा परिवर्तन की अनुमति
न देकर जाति - प्रथा बेरोजगारी की प्रमुख तथा प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है। श्रम - विभाजन मनुष्य की अपनी इच्छा पर निर्भर नहीं है। इस प्रथा में व्यक्ति को अपनी जाति के पारंपरिक पेशे से जुड़ने की बाध्यता होती है। जाति प्रथा के अंतर्गत जातिगत पारिवारिक पेशा मनुष्य की स्वाभाविक प्रेरणा, रूचि एवं आत्म शक्ति को दबा देता है। अतः आर्थिक पहलू से भी जाति - प्रथा हानिकारक है।

पाठ्गत प्रश्न
1. जातिवाद के पोषक उसके पक्ष में क्या तक देते है ?
2. जाति प्रथा समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कही जा सकती ?
3. जाति प्रथा भारत में बेराजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है ?
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