जैव प्रक्रम FREE NOTES PDF DOWNLOAD 🏆 CLASS - 10th

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सजीव और निर्जीव
★ सजीव वस्तऍं :
वे सभी वस्तुएँ सजीव वस्तुएँ कहलाती है, जिसमें पोषण, श्वसन,उत्सर्जन तथा वृद्धि जैसी क्रियाएँ होती है।
जैसे :- जंतु और पौधे।

★निर्जीव वस्तुएँ :
वे सभी वस्तुएँ निर्जीव वस्तुएँ कहलाती है, जिसमें जीवन के कोई भी आवश्यक कार्य संपन्न नहीं होता।
जैसे :- चट्टान, मिट्टी, लकड़ी इत्यादि।

सजीव और निर्जीव में अंतर

सजीव निर्जीव
ये पोषण करते है। ये पोषण नहीं करते है।
इनमें श्वसन होता है। इनमें श्वसन नहीं होता है।
ये जनन करते है। ये जनन नहीं करते है।
इनमें वृद्धि होता है। इनमें वृद्धि नहीं होता है।
ये स्थान परिवर्तन करते है। ये स्थान परिवर्तन नहीं करते है।


★ नोट :
"विषाणु सजीव और निर्जीव दोनों होता है। ये सजीव कोशिका को संक्रमित करता है, तो सजीव होता है तथा खुले वातावरण में निर्जीव होता है।" "विषाणु सजीव और निर्जीव दोनों होता है। ये सजीव कोशिका को संक्रमित करता है, तो सजीव होता है तथा खुले वातावरण में निर्जीव होता है।" "विषाणु सजीव और निर्जीव दोनों होता है। ये सजीव कोशिका को संक्रमित करता है, तो सजीव होता है तथा खुले वातावरण में निर्जीव होता है।"


★ निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखें
1. कोई वस्तु सजीव अथवा निर्जीव है इसका निर्धारण आप कैसे करेंगे ?
2. सजीव के पाॅंच लक्षण लिखें ?
3. सजीव और निर्जीव के पाँच - पाॅंच उदाहरण दें ?
4. कौन से प्रक्रम सभी जीवों के लिये अनिवार्य है ?

★ जैव प्रक्रम :
वे सभी प्रक्रम जो संयुक्त रूप से जीवों के अनुरक्षण का कार्य करते है, जैव प्रक्रम कहलाते है ।
जैसे :- 1. पोषण, 2. श्वसन, 3. वहन, 4. उत्सर्जन, 5. जनन

★ पोषण :
पोषण वह प्रक्रम है, जिसमें जीव भोजन के रूप में ऊर्जादायक और शरीर निर्माता पदार्थों को प्राप्त करता है।
इस प्रक्रम द्वारा शरीर के कोशिकाओं के क्षति तथा टूट - फूट रोकने के लिए बाहरी स्त्रोत से ऊर्जा प्राप्त किया जाता है ।

• पोषण के आधार पर जीवों को दो समूह में बांटा जा सकता है -

पोषण (प्रकार)
1. स्वपोषण जैसे : पौधे
2. परपोषण या विषणपोषी पोषण

★ स्वपोषण :
स्वपोषण वह जैव प्रक्रम है, जिसमें कोई जीव सरल अकार्बनिक पदार्थो से जटिल कार्बनिक पदार्थो के रूप में स्वयं अपना भोजन संश्लेषित करते है। जो जीव स्वपोषण करते है, स्वपोषी कहलाते है।
जैसे - हरे पौधे तथा जीवाणु

★ परपोषण या विषणपोषी पोषण :
परपोषण वह जैव प्रक्रम है, जिसमें कोई जीव अपना भोजन किसी न किसी रूप में अन्य स्त्रोतों से प्राप्त करते है। ऐसे जीव परपोषी कहलाते है।
इस प्रकार के पोषण में जटिल पदोर्थो को सरल पदोर्थो के रूप में खंडित करने के लिए जीव एंजाइम का उपयोग करते है।
परपोषी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वपोषी पर आश्रित होते है।


एंजाइम : जीव शरीर में रसायनिक प्रक्रियाओं के उत्प्रेरक के लिए कार्बनिक उत्प्रेरक है। एंजाइम : जीव शरीर में रसायनिक प्रक्रियाओं के उत्प्रेरक के लिए कार्बनिक उत्प्रेरक है।


उत्प्रेरक(catalyst) : जिस पदार्थ की उपस्थिति से अभिक्रिया की गति बढ़ जाती है। उत्प्रेरक(catalyst) : जिस पदार्थ की उपस्थिति से अभिक्रिया की गति बढ़ जाती है।


परपोषण के प्रकार
1. मृतजीवी पोषण :
वह जैव प्रक्रम है जिसमें कोई जीव मृत पादपों या जीवों के शरीर से अपना भोजन घुलित कार्बनिक पदार्थ के रूप में प्राप्त करता है । ऐसे जीव मृत जीवी कहलाते है।
जैसे - कवक, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ

2. परजीवी पोषण :
परजीवी पोषण वह जैव प्रक्रम है, जिसमें कोई जीव अन्य जीव शरीर के कार्बनिक पदार्थो को भोजन के रूप में प्राप्त करता है।
जैसे - गोलकृमि, मलेरिया परजीवी

3. प्राणिसम पोषण :
प्रणिसम पोषण वह जैव प्रक्रम है, जिसमें कोई जीव ठोस कार्बनिक पदार्थो के रूप में अन्य स्त्रोतों से भोजन प्राप्त करते है। ऐसे जीव प्राणिसम जीव कहलाते है।
जैसे - मनुष्य, अमीबा, मेंढ़क

★ प्रकाश संश्लेषण :
हरी पादप कोशिकाओं में सम्पन्न होने वाली प्रकाश संश्लेषण एक वह रासायनिक अभिक्रिया है, जिसमें ग्लूकोज या मंड का निर्माण होता है।
सूर्य प्रकाश
6𝐶𝑂2 + 12𝐻2𝑂 → 𝐶6𝐻12𝑂6 + 6𝑂2 + 6𝐻2𝑂
पूर्ण हरित

★ प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची समाग्री :
• सूर्य से प्रकाश
• वायुमंडल से कार्बनडाईऑक्साइड
• मिट्टी से पानी
• पौधों के हरे भागों में पाए जाने वाले क्लोरोप्लास्ट में उपस्थित क्लोरोफिल।

★ प्रकाश संश्लेषण के दौरान निम्नलिखित घटनाएं होती है :
• क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश उर्जा अवशोषित होता है।
• सौर उर्जा का रासायनिक उर्जा में परिवर्तन होता है।
• जल अणुओं का H2 और 02 में अपघटन होता है।
• CO2 का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन होता है।

★ रंध्र या स्टोमेटा :
पेड़ पौधों की पत्तियों की सतह पर छोटे - छोटे छिद्र होते है, जिन्हे रंध्र या स्टोमेटा कहते है।
प्रमुख कार्य : 
• प्रकाश संश्लेषण क्रिया में गैसो का विनिमय इसी रंध्र द्वारा होता है।
• वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया में जल का पर्याप्त मात्रा में हानि।

★ रंध्र की क्रिया :
पत्तियों की सतह पर मौजूद रंध्रो को चारो ओर से दो कोशिकाएँ घेरे रहती है, जिन्हें द्वार कोशिका कहते है। ये कोशिकाएँ रंध्रो के खुलने या बंद होने के लिए उत्तरदायी है। जब द्वार कोशिकाओं में जल अंदर जाता है तब वह फूल जाती है, जिससे छिद्र खुल जाता है। जब द्वार कोशिकाएँ सिकुड़ती है तब छिद्र बंद हो जाता है। रंध्र से पर्याप्त मात्रा में जल की हानी होती है।

आगे का दूसरे NOTES में दिया जायेगा।

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